टाली जा सकती थी यह त्रासदीः पुष्पा- 2 भगदड़

भारत को भीड़ प्रबंधन में सुधार के लिए कदम उठाने होंगे

यह बहुत त्रासद है कि भारत शायद सबसे ज्यादा भगदड़ और उसके नतीजतन चोट व मौत की घटनाओं वाला देश है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि साल 1996 और 2022 के बीच, भारत में भगदड़ की 3,935 घटनाएं दर्ज की गयीं, जिसके नतीजतन 3,000 से ज्यादा मौतें हुईं। ये आंकड़े धार्मिक उत्सवों, राजनीतिक रैलियों, और सेलिब्रिटी कार्यक्रमों के दौरान लोक सुरक्षा सुनिश्चित करने में दीर्घकालिक नाकामी दिखाते हैं। इन त्रासदियों में एक बड़ा हिस्सा धार्मिक जमावड़ों का है। सन 2011 में, सबरीमाला में एक संकरे रास्ते पर 106 लोगों की मौत हुई। सन 2013 में, इलाहाबाद में कुंभ मेले के दौरान, एक रेलवे स्टेशन पर बहुत ज्यादा भीड़ के चलते 36 लोग मारे गये। राजनीतिक रैलियां भी जानलेवा साबित हुई हैं – साल 2014 में, पटना के गांधी मैदान में मची भगदड़ में 30 से ज्यादा लोग मारे गये। सेलिब्रिटी कार्यक्रमों के दौरान भगदड़ में मौत की घटनाएं विरल रही हैं, लेकिन वे प्रशंसकों के जुनून और खराब प्लानिंग के खतरनाक मिश्रण की ओर इशारा करती हैं।

हैदराबाद के संध्या थिएटर में, ‘पुष्पा 2: द रूल’ फिल्म के एक प्रचार कार्यक्रम के दौरान, तेलुगु अभिनेता अल्लू अर्जुन के ‘अचानक’ आगमन से भगदड़ मच गयी। एक 35-वर्षीय महिला रेवती ने अपनी जान गंवा दी, और उसका आठ साल का बेटा श्री तेज जिंदगी की जंग लड़ रहा है। अल्लू अर्जुन, फिल्म की प्रोडक्शन टीम, और निर्देशक ने मिलकर रेवती के परिवार को दो करोड़ रुपये देने का निर्णय लिया है। घटना के बाद, हैदराबाद पुलिस, अभिनेता, और उनकी प्रोडक्शन टीम पर दोष मढ़ा गया है। प्रोटोकॉल, सुरक्षा बंदोबस्त, और भीड़ नियंत्रण को लेकर उठ रहे सवालों का साफ जवाब अभी तक नहीं मिला है। क्या पुलिस बल इस आकार की भीड़ के लिए तैयार था? क्या अभिनेता और उनकी प्रोडक्शन टीम भगदड़ की खबर मिलने पर तुरंत हरकत में आये? रेवती की मौत लापरवाही, कुप्रबंधन, और अपर्याप्त प्लानिंग के एक पैटर्न की ओर इशारा करती है जिसे बार-बार दोहराया जाता है। भारत को अमल में लाने लायक उपायों के साथ भीड़ की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। कार्यक्रमों की प्लानिंग के दौरान जगह व गर्मी का ख्याल रखना और बहुत ज्यादा थकान रोकने के लिए पानी पीने की पर्याप्त सुविधा प्रदान करना महत्वपूर्ण है। प्रवेश और निकास के कई द्वार होने चाहिए, जो स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट हों और भीड़ के अनुमानित आकार को संभालने में सक्षम हों। चिकित्सा सहायता, प्रशिक्षित कर्मियों की तैनाती और कारगर अव्यवस्था नियंत्रण प्रोटोकॉल सहित आपातकालीन तैयारी को एक मानक होना चाहिए, जिसके साथ कोई समझौता नहीं हो सकता। भारत को अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए, चाहे वे आस्था, राजनीति के लिए जमा हुए हों या फिर प्रशंसक होने के नाते।

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